जैसलमेर (Jaisalmer) वन विभाग के खंड डीडीपी की सदर रेंज के अधिकारियों और कर्मचारियों ने देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का काम किया है। तनोट क्षैत्र में वन विभाग की एक साइट पर झालावाड़ के 40 मजदूरों से पौधारोपण करवाया गया हैं।
महत्वपूर्ण बात ये हैं कि यह क्षैत्र आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 1961 के अंतर्गत प्रतिबंधित हैं, जहां पर रुकने के लिए एसडीएम अथवा जिला कलेक्टर की सक्षम स्वीकृति हीना आवश्यक हैं। इस अभाव में स्थानीय पुलिस द्वारा बिना परमीशन के रुकने वाले लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता हैं और उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही भी की जा सकती हैं।
हालांकि उक्त मजदूर अनपढ़ हैं जिन्हें ऐसे कानून और नियम की जानकारी नहीं थी मगर सम्बंधित रेंज का रेंज अधिकारी और कर्मचारियों की जिम्मेदारी थी कि वो इसकी परमिशन लेते, जो कि नहीं ली।
जैसलमेर (Jaisalmer) वन विभाग द्वारा मजदूरों की मजदूरी रोकने से खुला पूरा मामला
जानकारी में आया हैं कि एक बिचौलिए के माध्यम से झालावाड़ के 40 मजदूरों को तनोट थाना क्षेत्र में जैसलमेर रेंज की एक साइट पर 10 दिन रुकवाकर 40,000 पौधे रोपने का कार्य करवाया गया। उसके बाद उन मजदूरों को वहां से लाकर जैसलमेर स्थित रैन बसेरे में छोड़ दिया गया।

मजदूर पिछले 4 दिन से डेडानसर बस स्टैंड स्थित रैन बसेरे में रुके हुए थे और वन विभाग के जिम्मेदार और बिचौलिया उनका भुगतान नहीं कर रहे थे और पैसे के अभाव में ये गरीब मजदूर अपने घर झालावाड़ लौट नहीं पा रहे थे। जिस पर मामला मीडिया में हाइलाइट हुआ।
भारत-पाक सीमा से महज 20 किलोमीटर अंदर मजदूर बिना सक्षम स्वीकृति के 10 दिन रहे। पहले मजदूरों का भुगतान रोका गया, फिर मामला मीडिया में आने के बाद आज दिन में किया भुगतान किया गया।
ग्राम्य वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति के माध्यम से होता हैं वन विभाग का कार्य और स्थानीय लोगों को दिया जाता हैं रोजगार
वन विभाग द्वारा ग्राम्य वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति के माध्यम से पौधारोपण के कम होते हैं, जिसमें स्थानीय जनता को रोजगार देने के नियम हैं साथ ही मजदूरों का भुगतान भी ऑनलाइन खाते में ट्रांसफर के माध्यम से होता हैं। मगर वन विभाग की सदर रेंज जैसलमेर ने तनोट के पास की साइट पर पौधारोपण का काम एक बिचौलिए को नियम विरुद्ध ठेके पर दे दिया।

यदि पौधारोपण के कार्य ही ठेके पर करवाए जाने हैं तो फिर ग्राम्य वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति के गठन का प्रोपेगेंडा क्यों किया जाता हैं? यह समझ से परे हैं। यदि कार्य बाहर के मजदूरों से ठेके पर करवाया जाता हैं तो स्वाभाविक हैं कि उक्त साइट का भुगतान अधिकारियों और कर्मचारियों के नजदीकी रिश्तेदारों के खाते में किया जाता होगा।
ऐसे में स्पष्ट हैं कि कि विभाग द्वारा एक और बड़े घोटाले की तैयारी हैं, जो कि जांच का विषय हैं। ऐसे में ग्राम्य वन सुरक्षा एवं प्रबंध समितियों में व्यापक फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार की संभावना हैं जिसकी पूर्ण जांच की आवश्यकता हैं।
घुसपैठिए ले सकते हैं वन विभाग के मजदूर रूप
जब 40 बाहरी मजदूर अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास 10 दिन ओर रातें बिना किसी जांच के रुक सकते हैं तो ऐसे में कोई भी घुसपैठिया वन विभाग के मजदूर की आड़ में बॉर्डर तक जा सकता है।
एक तरफ जहां पाक की नापाक हरकते लगातार जारी हैं जिसमें ड्रोन आदि से छोटे हथियार और नशे की खेप भारत में भेजने की खबरें आए दिन सामने आती हैं तो फिर वन विभाग के मजदूर की आड़ में कोई भी घुसपैठिया या अपराधी तत्व अपनी गतिविधि को अंजाम दे सकते हैं। ऐसे में स्पष्ट हैं कि यह मामला गंभीर सुरक्षा चूक को दर्शाता है।
मजदूर बिना किसी पुख्ता जांच के सीमावर्ती इलाके में काम कर रहे थे। इससे देश की सरहद की सुरक्षा पर बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है। झालावाड़ के मजदूर बिना किसी सक्षम स्वीकृति के सीमा के नजदीक तक पहुंच गए। वन विभाग की इस चूक पर सुरक्षा एजेंसियों को संज्ञान लेकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।
सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर मजदूरों को सीमा पर भेजना खतरनाक साबित हो सकता है। किसी भी अनजान व्यक्ति की प्रवेश जांच न होना सुरक्षा की दृष्टि से बड़ा खतरा है। देश की सुरक्षा से संबंधित इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

इनका कहना हैं..
इस संबंध में जब विभाग के उपवन संरक्षक आशुतोष ओझा से फोन के माध्यम से पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने बताया कि मैं संबंधित रेंजर से बात करके पता करता हूं बाकि लेबर का अरेंजमेंट करना रेंजर की जिम्मेदारी है। बाकि पूरी बात की जानकारी करने के बाद ही जवाब दे पाऊंगा। मगर जैसलमेर सदर रेंज के रेंज अधिकारी राजकुमार बसेटिया से बात की तो पहले तो उन्होंने बताया कि मैं इस मामले की जानकारी करता हूं, इतना कहकर फोन काट दिया। फिर उन्होंने दुबारा फोन किया तब अपनी अफसरी का रौब जताते हुए कहा कि लेबर जैसलमेर में मिलती नहीं इसलिए बाहर से बुलाई थी और पत्रकार पर दबाव बनाने के लिए धमकाते हुए कहा कि आपने हमारी खबरें छापी हैं जो कि गलत हैं, इसलिए मैं जयपुर तक शिकायत करूंगा। क्या पत्रकार द्वारा किसी राजकीय कार्य को लेकर अधिकारी को सवाल करना किसी ब्लैकमेलिंग में आता हैं? यह समझ से परे हैं।
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