बाड़मेर। राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित गडरा रोड, भारत-पाकिस्तान की सीमा के नजदीक बसा एक ऐतिहासिक स्थल है, जो 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान रेलवे के 17 वीर जवानों की शहादत का गवाह बना। हर साल 9 सितंबर को यहां शहीद स्मारक पर मेला आयोजित किया जाता है, जहां देशभर से लोग पहुंचकर इन वीर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
यह भारत का पहला रेलवे शहीद स्मारक है, जहां रेलवे के कर्मचारियों के बलिदान को सम्मान दिया जाता है। लेकिन दुख की बात यह है कि रेलवे ने आज तक इस स्थल को भव्य रूप नहीं दिया। जहां रेलवे अरबों का टर्नओवर करता है, वहीं इस ऐतिहासिक स्थान को संरक्षित करने में विफल रहा है।
9 सितंबर 1965: जब रेलवे कर्मचारियों ने निभाई देशभक्ति की मिसाल
युद्ध की पृष्ठभूमि
1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा, तब गडरा रोड रेलवे स्टेशन रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण था। भारतीय सेना के लिए रसद, हथियार और अन्य आवश्यक वस्तुएं पहुंचाने का एकमात्र मार्ग रेलवे ही था।
हमले का वो काला दिन
9 सितंबर 1965 को भारतीय सेना के लिए राशन और हथियारों से भरी एक ट्रेन बाड़मेर से गडरा रोड के लिए रवाना हुई। पाकिस्तान को यह बात पता थी कि यह रेलगाड़ी भारतीय सेना के लिए जीवनरेखा साबित हो सकती है। इसलिए जैसे ही यह ट्रेन गडरा रोड के पास पहुंची, पाकिस्तानी सेना ने उस पर बमबारी शुरू कर दी।
वीरता की अनसुनी कहानी
पाकिस्तानी सेना की भीषण बमबारी के बावजूद, भारतीय रेलवे के जांबाज कर्मचारी अपनी ड्यूटी पर अडिग रहे। लोको पायलट चुन्नीलाल और उनके साथी इंजनों को चलाते रहे, गैंगमैन पटरियों की मरम्मत करते रहे, और हर कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी निभाता रहा। लेकिन इस बलिदान की कीमत 17 वीरों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
गडरा रोड का शहीद मेला: देशभक्ति और कृतज्ञता का प्रतीक
कैसे शुरू हुई यह परंपरा?
रेलवे कर्मचारियों और स्थानीय लोगों ने इस बलिदान को हमेशा याद रखने के लिए एक स्मारक बनाया और हर साल 9 सितंबर को यहां श्रद्धांजलि सभा और मेले का आयोजन शुरू किया।
कैसे होता है आयोजन?
- बाड़मेर-मुनाबाव के बीच चलने वाली ट्रेन इस दिन निःशुल्क चलाई जाती है।
- रेलवे कर्मचारी, अधिकारी, स्थानीय लोग और शहीदों के परिजन इस मेले में शामिल होते हैं।
- शहीदों की याद में श्रद्धांजलि दी जाती है और उनकी वीरता को सलाम किया जाता है।
- देशभक्ति के नारों से पूरा गडरा रोड गूंज उठता है।
रेलवे की उपेक्षा: क्या शहीदों की कुर्बानी बेकार जा रही है?
सरकार और रेलवे की अनदेखी
आजादी के बाद से भारतीय रेलवे लगातार प्रगति कर रहा है, लेकिन गडरा रोड शहीद स्मारक को लेकर उसकी उदासीनता शर्मनाक है।
- 56 साल बाद भी यह स्मारक उचित देखभाल से वंचित है।
- रेलवे की ओर से करोड़ों रुपये खर्च करके इसे एक राष्ट्रीय गौरव स्थल बनाया जा सकता था।
- मगर, प्रशासन की अरुचि के चलते यह स्थल अभी भी अनदेखा पड़ा हुआ है।
रेलवे के लिए एक सबक
जिस रेलवे ने अपने 17 वीर जवानों को खोया, उसे ही उनकी स्मृति को संजोने में कोई दिलचस्पी नहीं है। यह समय है कि रेलवे इस स्थल को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में विकसित करे और इन शहीदों की स्मृति को आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवंत बनाए।
1965 के युद्ध में शहीद हुए थे रेलवे के ये 17 वीर जिनका बना हुआ रेलवे शहीद स्मारक
नंदराम गैंगमेट, मुल्तानाराम पेंटर, भंवराराम कांटेवाला, करनाराम ट्रोलीमैन, मालाराम गैंगमैन, हेमाराम खलासी, मघाराम गैंगमैन, रावताराम गैंगमैन, हुकमाराम गैंगमैन, लालाराम गैंगमैन, चिमाराम गैंगमैन, खीमराज गैंगमैन, देवीसिंह खलासी, जेहाराम गैंगमैन, चुन्नीलाल ड्राइवर, चिमनसिंह फायरमैन, माधोसिंह फायरमैन.
क्या भविष्य में मिलेगा शहीदों को उचित सम्मान?
गडरा रोड का शहीद मेला भारतीय रेलवे के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है, जिसे उचित रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए।
- क्या रेलवे इसे एक भव्य राष्ट्रीय स्मारक बनाएगा?
- क्या इन वीरों की गाथा स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ी जाएगी?
- क्या प्रशासन इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करेगा?
अगर ऐसा होता है, तो यह न केवल रेलवे के इन वीरों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी, बल्कि देश के युवाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
गडरा रोड में रेलवे शहीदों का बलिदान अमर रहेगा
गडरा रोड न केवल एक रेलवे स्टेशन है, बल्कि भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 की एक ऐतिहासिक गाथा भी है। यहाँ के शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति देकर यह साबित कर दिया कि रेलवे सिर्फ पटरियों का जाल नहीं, बल्कि देशभक्ति का प्रतीक भी है।
रेलवे को चाहिए कि इन वीरों की स्मृति को संरक्षित करे और इसे एक भव्य स्मारक का रूप दे, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इनकी वीरता से प्रेरित होती रहें। गडरा रोड के ये शहीद सिर्फ रेलवे के नहीं, बल्कि पूरे भारत के गौरव हैं।
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