मणिपुर हिंसा के लिए कांग्रेस ने भाजपा सरकार की आलोचना की

Sabal SIngh Bhati
By
5 Min Read

नई दिल्ली, 9 मई ()। कांग्रेस ने मंगलवार को मणिपुर के हालात को शत्रुतापूर्ण और घृणित करार दिया और राज्य व केंद्र की भाजपा सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में राजनीतिज्ञता के गुणों का अभाव है।

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने यहां पार्टी मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा : मणिपुर में स्थितियां शत्रुतापूर्ण, घृणित और भयावह हैं। हम इस त्रासदी के बारे में गहराई से चिंतित हैं, जिसे टाला जा सकता था।

भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि पिछले एक सप्ताह में मणिपुर राज्य सरकार ने उनकी अराजकता, स्टेटलेसनेस और बेशर्मी की स्थिति को दर्शाया है।

राज्यसभा सांसद और शीर्ष वकील सिंघवी ने आरोप लगाया, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली भाजपा सरकारें शासन कला, भव्यता और राजकीय कौशल के गुणों से बुरी तरह से रहित हैं।

उन्होंने भाजपा पर एक काला अतीत होने का भी आरोप लगाया और कहा, उसके कार्यो और निष्क्रियताओं ने समुदायों और जातियों को एक-दूसरे के खिलाफ उकसाया है।

सिंघवी ने जोर देकर कहा कि हिंसा पर एक सरसरी नजर यह दर्शाने के लिए पर्याप्त थी कि मणिपुर में हिंसा को बढ़ावा देने के लिए राज्य और केंद्र सरकार समान रूप से जिम्मेदार हैं।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा, हाल के घटनाक्रम में भारत के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने सोमवार को आश्चर्य व्यक्त किया कि 23 साल पुराने संविधान पीठ के फैसले में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि किसी भी अदालत या राज्य के पास जोड़ने, घटाने की शक्ति नहीं है। मणिपुर उच्च न्यायालय को पहले संशोधित अनुसूचित जनजाति सूची नहीं दिखाई गई थी।

उन्होंने कहा, हम मानते हैं कि मणिपुर उच्च न्यायालय में जो हुआ, वह राज्य सरकार की लापरवाही और संवेदनहीनता को दर्शाता है।

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सीजेआई ने कहा कि उच्च न्यायालय के पास अनुसूचित जनजातियों की सूची में सीधे बदलाव करने की शक्ति नहीं है, यह शक्ति राष्ट्रपति के पास है।

सिंघवी ने कहा, मैं आपको याद दिला दूं कि 27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने हिंसक झड़पों और मौतों को लेकर राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति सूची में मेइती को शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया था और आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर जवाब मांगा था।

उन्होंने कहा, 23 साल पुराने संविधान पीठ के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि किसी भी अदालत या राज्य के पास एसटी सूची में जोड़ने, घटाने या संशोधित करने की शक्ति नहीं है और इसे राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा नजरअंदाज किया गया और मणिपुर उच्च न्यायालय के ध्यान में क्यों लाया गया? राज्य सरकार क्या किसी ऐसी चीज पर निर्णय लेती है, जिसे लागू करने की शक्ति उसके पास नहीं होती?

सिंघवी ने कहा, केंद्र निष्क्रिय क्यों था? उसने हाल ही में पिछले शीतकालीन और बजट सत्रों के दौरान विभिन्न राज्यों के एसटी को सूचीबद्ध करने के लिए लगभग आधा दर्जन विधेयक लाए, तो उसने मणिपुर की उपेक्षा क्यों की?

सिंघवी ने यह भी मांग की कि जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए और सवाल किया जाना चाहिए कि मणिपुर को इस दुखद और दयनीय स्थिति में लाने के लिए मुख्य रूप से कौन जिम्मेदार है।

उनकी टिप्पणी मणिपुर के मुख्यमंत्री सिंह द्वारा स्वीकार किए जाने के एक दिन बाद आई है कि तीन मई से मणिपुर में जातीय हिंसा में महिलाओं सहित कम से कम 60 लोग मारे गए हैं और 231 लोग घायल हुए हैं, जबकि 1,700 घर जलाए गए हैं।

3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा अनुसूचित जनजाति में मेइती समुदाय को शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए बुलाए गए आदिवासी एकजुटता मार्च के दौरान विभिन्न स्थानों पर अभूतपूर्व हिंसक झड़पें, हमले और आगजनी हुई।

/

देश विदेश की तमाम बड़ी खबरों के लिए निहारिका टाइम्स को फॉलो करें। हमें फेसबुक पर लाइक करें और ट्विटर पर फॉलो करें। ताजा खबरों के लिए हमेशा निहारिका टाइम्स पर जाएं।

Share This Article